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दोस्तों आज का यह लेख Pitru Paksha Shraddha 2021 श्राद्ध क्या हैं , और श्राद्ध में किन नियमों का पालन करना चाहिए? बताएंगे क्योंकि बहुत से लोग श्राद्ध में सही नियम का पालन नहीं करते हैं जिसकी बजह से उन्हें शुभफल की जगह अशुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। पितृपक्ष में सही नियम से किया हुआ श्राद्ध कर्म अनेकों दोषों को दूर कर हमें अनेकों शुभ फल प्राप्त होते है और साथ ही हमारे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

श्राद्ध क्या हैं?

श्रद्धा और मंत्र के मेल से पितरों की तृप्ति के निमित्त जो विधि होती है उसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं। श्राद्ध शब्द की उतपत्ति श्रद्धा से हुई हैं। अपने पूर्वजों यानी पितरों का कर्तव्यपूर्व और करूणद्ध किये जाने वाले श्राद्ध से श्रद्धा जीवित रहती हैं।

श्राद्ध का महत्व

हमारे हिन्दू धर्म और अन्य धर्मों में श्राद्ध का बहुत ही महत्व दिया गया हैं।हिन्दू धर्म के अनुसार श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष में किया गया विधि – विधान से पितरों का पिण्डदान यानी कि श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती हैं। अतः हमें पितृ ऋण या दोष से भी मुक्ति मिलती है, और हमें सुखमय जीवन के लिए पितरों का आशीष भी मिलता हैं। जिससे में पितृ दोष और पितृ ऋण जैसे विकारों से मुक्ति मिलती हैं और अक्षय फल की प्राप्ति होती हैं। परिवार में सुखमय जीवन और धन-धान की पूर्ति होती हैं। हमारे सम्पूर्ण भारत में यह पर्व मनाया जाता हैं इसलिए इस पर्व को महापर्व के रूप में भी मनाया और जाना जाता हैं। सोलह दिनों का यह पर्व जो सच्चे मन से अपनाता हैं उसका सम्पूर्ण जीवन खुशियों से भर जाता हैं।

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श्राद्ध में किन नियमों का पालन करना चाहिए ?

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पितृपक्ष के श्राद्ध में बहुत से नियमों का पालन किया जाता हैं। जो कि बेहद ही महत्वपूर्ण हैं यदि आप अपने पितरों के श्राद्ध में इन नियमों का पालन करते हैं तो यह श्राद्ध पूर्ण माना जाता हैं।

● प्रतिपदा का श्राद्ध ननिहाल पक्ष के लिए किया जाता हैं। अर्थात नाना-नानी का श्राद्ध।

● बच्चों एवं सन्यासियों के लिए पिंडदान नही किया जाता।

● श्राद्धकर्ता को पितृपक्ष में मांस-मदिरापान नही करना चाहिए, इससे हमारे इष्टदेव रुष्ट हो जाते हैं। श्राद्ध में ब्राह्मणों को खिलाने के लिए बनवाऐ जाने वाला भोजन शाकाहारी भोजन ही हो।

● विचारशील पुरूष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दें। परन्तु श्राद्ध के दिन कोई अनिमन्त्रित ब्राह्मण घर पर आ जाए तो उसे भी भोजन कराना चाहिए।

●  श्राद्ध के लिए एक दम साफ स्वच्छ एवं शुद्धता को ध्यान में रखते हुए बना हुआ भोजन अत्यंत मधुर अर्थात स्वादिष्ट होना चाहिए। साथ ही भोजन में 2-3 तरह के पकवान होना जरूरी हैं। यदि आप अच्छी तरह से सम्पन्न है तो आप खाने में जो ठीक समझें वह अवश्य ही बनवाए इससे आपके पितरों को शांति मिलेगी।

● ब्राह्मणों को पात्र में भोजन रखकर श्राद्धकर्ता को अत्यंत सुंदर और मधुर वाणी से कहना चाहिए कि ” हे महानुभावों ! अब आप अपनी इच्छानुसार भोजन करें। “

● श्राद्ध में पिंडदान करने के बाद सर्वप्रथम भोजन कौओं को फिर ब्राह्मणों को उसके बाद श्राद्धकर्ता को स्वयं भोजन करना चाहिए।

विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गौत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर मिलता हैं।

● श्राद्धकाल में शरीर, द्रव, स्त्री, भूमि, मन, मन्त्र और ब्राह्मण – ये सात चीजें विशेष शुद्ध होनी चाहिए।

● श्राद्ध में तीन बातों कों ध्यान में रखना चाहिए: शुद्धि, अक्रोध और अत्त्वरा (जल्दबाजी नहीं करना)।

● श्राद्ध में मन्त्र का बड़ा ही महत्व है। श्राद्ध में आपके द्वारा दी गयी वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, लेकिन आपके द्वारा  मंत्र का उच्चारण ठीक न हो तो काम अस्त-व्यस्त हो जाता हैं। मन्त्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और निम्मित श्राद्ध करते हों उसके नाम का उच्चारण भी शुद्ध करना चाहिए।

● जिनका देहावसान-तिथि का पता नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए।

( महत्वपूर्ण बात – विष्णु पुराण के अनुसार हम एक-दूसरे की सद्गति के लिए जीते-जी भी सोचते हैं, मरते समय भी सोचते हैं और मरने के बाद भी सोचते हैं। )

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