sc st act kya hai

SC ST Act kya hai – What is SC-ST Act

SC ST Act kya hai अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989)

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SC/ST Act को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था. यह नियम पूरे भारत में 30 जनवरी 1990 से लागू किया गया। यह अधिनियम उस हर एक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम में 5 अध्याय एवं 23 धाराएँ हैं।

SC ST Act kya hai, SC / ST Act क्या करता है?

SC/ST Act की 3 मुख्य विशेषताएँ हैं-

  • यह अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित
    जनजातियों (ST) में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ़ अपराधों को दंडित करता है।
  • यह अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार देता है।
  • SC/ST Act अदालतों को स्थापित करता है, जिससे मामले तेज़ी से निपट सकें.

SC / ST Act के तहत किस प्रकार के अपराध दण्डित किये गए हैं ?

कुछ ऐसे अपराध जो भारतीय दंड संहिता में शामिल हैं, उनके लिए इस कानून में अधिक सज़ा निर्धारित की गयी है।

अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के सदस्यों के विरुद्ध होने वाले क्रूर और अपमानजनक अपराध, जैसे उन्हें जबरन अखाद्य पदार्थ (मल, मूत्र इत्यादि) खिलाना या उनका सामाजिक बहिष्कार करना, को इस क़ानून के तहत अपराध माना गया है. SC/ST Act में ऐसे २० से अधिक कृत्य अपराध की श्रेणी में शामिल किए गए हैं.

आर्थिक बहिष्कार किसे कहते हैं ?

यदि कोई व्यक्ति किसी अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के सदस्य से व्यापार करने से इनकार करता है तो इसे आर्थिक बहिष्कार कहा जाएगा।

  • किसी अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के सदस्य के साथ काम करने या उसे काम पर रखने/नौकरी देने से इनकार करना।
  • अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के सदस्य को सेवा न प्रदान करना अथवा उन्हें सेवा प्रदान करने नही देना।
    सामान्यतः व्यापार जैसे किया जाता है उस तरीके में बदलाव लाना क्योंकि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति का सदस्य इसमें शामिल है।

सामाजिक बहिष्कार क्या है ?
सामाजिक बहिष्कार तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के साथ संपर्क में आने से इनकार करता है या उसे अन्य समूहों से अलग रखने की कोशिश करता है.

क्या एक सरकारी अधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन न करने के लिए दंडित किया जा सकता है?

यदि कोई सरकारी अधिकारी (जो कि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है) , अभिप्रायपूर्वक/जानबूझकर इस अधिनियम के तहत दिए गए कर्तव्यों का पालन नहीं करता है तो उसे ६ महीने से १ साल तक के कारावास की सज़ा दी जा सकती है। एक अधिकारी पर केस तभी किया जा सकता है जब मामले की जाँच हो चुकी हो, और जाँच की रिपोर्ट में यह रास्ता सुझाया गया हो।

सरकारी अधिकारियों के कर्तव्य:

  • FIR/शिकायत दर्ज करना;
  • हस्ताक्षर लेने से पहले पुलिस थाने में दिए गए बयान को पढ़ कर सुनाना;
  • जानकारी देने वाले व्यक्ति को बयान की प्रतियाँ देना;
  • पीड़ित या गवाह का बयान रिकॉर्ड/ दर्ज़ करना;
  • FIR दर्ज़ करने के 60 दिन के अन्दर अपराध की जाँच करना और चार्जशीट/ आरोप पत्र पेश करना;
  • दस्तावेज़ तैयार करना और दस्तावेज़ों का सटीक अनुवाद करना.

यह कानून एस.सी., एस.टी. वर्ग के सम्मान, स्वाभिमान, उत्थान एवं उनके हितों की रक्षा के लिए भारतीय संविधान में किये गये विभिन्न प्रावधानों के अलावा इन जातीयों के लोगों पर होने वालें अत्याचार को रोकनें के लिए 16 अगस्त 1989 को उपर्युक्त अधिनियम लागू किये गये। वास्तव में अछूत के रूप में दलित वर्ग का अस्तित्व समाज रचना की चरम विकृति का द्योतक हैं।

भारत सरकार ने दलितों पर होने वालें विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को रोकनें के लिए भारतीय संविधान की अनुच्छेद 17 के आलोक में यह विधान पारित किया। इस अधिनियम में छुआछूत संबंधी अपराधों के विरूद्ध दण्ड में वृद्धि की गई हैं तथा दलितों पर अत्याचार के विरूद्ध कठोर दंड का प्रावधान किया गया हैं। इस अधिनिमय के अन्तर्गत आने वालें अपराध संज्ञेय गैरजमानती और असुलहनीय होते हैं। यह अधिनियम 30 जनवरी 1990 से भारत में लागू हो गया।

दण्ड

SC / ST Act के तहत अपराधों के लियें दोषी व्यक्ति को 6 माह से 5 साल तक की सजा, अर्थदण्ड (फाइन) के साथ प्रावधान हैं। क्रूरतापूर्ण हत्या के अपराध के लिए मृत्युदण्ड की सजा हैं। अधिनियम की धारा 3(2) के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और-

  • यदि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के खिलाफ झूठा गवाही देता है या गढ़ता हैं जिसका आशय किसी ऐसे अपराध में फँसाना हैं जिसकी सजा मृत्युदंड या आजीवन कारावास जुर्मानें सहित है। और इस झूठें गढ़ें हुयें गवाही के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को फाँसी की सजा दी जाती हैं तो ऐसी झूठी गवाही देने वालें मृत्युदंड के भागी होंगें।

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यदि वह मिथ्या साक्ष्य के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लियें दोष सिद्ध कराता हैं जिसमें सजा 7 वर्ष या उससें अधिक है तो वह जुर्माना सहित सात वर्ष की सजा से दण्डनीय होगा।

आग अथवा किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा किसी ऐसे मकान को नष्ट करता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता हैं, वह आजीवन कारावास के साथ जुर्मानें से दण्डनीय होगा।

लोक सेवक होत हुयें इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह एक वर्ष से लेकर इस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा। अधिनियम की धारा 4 (कर्तव्यों की उपेक्षा के दंड) के अनुसार कोई भी सरकारी कर्मचारी/अधिकारी जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं, अगर वह जानबूझ कर इस अधिनियम के पालन करनें में लापरवाही करता हैं तो वह दण्ड का भागी होता। उसे छः माह से एक साल तक की सजा दी जा सकती हैं। (Source: WikiPedia)

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